गुरुवार, 1 जुलाई 2010

पीपल के पेड़ से लिपटे धागे

जब कभी देखती हूँ पीपल के पेड़ से लिपटे धागे ,आस्था और विश्वास की डोरियों सरीखे मन्दिरों में बंधीं अनगिनत चुन्नियाँ , सोचती हूँ , कि कितने ही लोगों की है ये चलने की डगर , सपने के सच होने का यकीन ... उँगलियों में पन्ने , माणिक , गोमेद , मोती …लिखी किस्मत को भी बदल पाने का यकीन ... किसने देखा वक़्त से पहले , टटोल किस्मत को …हर्ज़ कोई नहीं , गर जमीन मिले हौसले को …इन्सान जी जाये । डर ये लगता है , कहीं आँखें खुली न हों और ये आस्था जमीर को ही छल जाये ।

अँधविश्वास दुर्बल मन का मजहब है .......एडमण्ड बर्क

जब मन कमजोर होता है , सहारा तलाशता है , आस्थाओं में , कहीं से आराम जाये या कोई सपना यानि आशा हो तो चलने के लिए क़दमों में दम जायेऐसी आस्थाओं में बुद्धि के कान-आँख बंद हो जाते हैं , बस आस्था ही विश्वास का पानी पीती है , इन्सान भूल जाता है कि ऐसी स्थितियों का कोई दूसरा फायदा भी उठा सकता हैयाद रखें आप शिकार बन कर उसके जाल में फँस भी सकते हैंपैसा , कीर्ति या कोई और स्वार्थ उद्देश्य हो सकता हैये देखने के लिए भी अपनी आँख पर पड़े दुख सुख के परदे से बाहर आना पड़ेगा

ये भी सच है कि कई बार हम कोई अँगूठी पहनते हैं या कोई व्रत-पूजा करते हैं तो बड़ी सकारात्मक सी ऊर्जा महसूस करते हैं ! ये हमारे अन्दर का विश्वास ही जगमगा रहा होता हैयहाँ तक तो कोई हर्ज़ नहीं , जहाँ कुछ बुरा हुआ वहीं नकारात्मकता किस कगार पर ला कर छोड़ देती है ? इसीलिये कहा गया है कि अन्धविश्वास दुर्बल मन का मजहब हैयानि कमजोर मन जो अपनी ताकत को पहचानता ही नहीं है , मजहब का नाम देकर अँधविश्वासों की गली में भटकता रहता हैमकड़ी के जाले से बाहर नहीं आ पाता, हमेशा अपने दिल के साथ खिलवाड़ करता हुआ डोलता रहता है

विचार ही विचार की औषधि हैअपने विचारों को देखना सीखिएकौन से विचार रहे हैं और किधर ले कर जा रहे हैंनीचे लुढ़कना बहुत आसान होता है , मन को ढलान से ऊपर लाने में दम लगाना पड़ता हैतूफ़ान या मन में उठती लहरों के विरुद्ध ...तन और मन दोनों का दम लगाना पड़ता हैबस मन को ऊपर उठाने वाले विचार दो , अपनी नकेल अपने हाथ में रखोजिस गली जाना हो उसका विचार भी मत दो , यानि उस गली का पता भी मत पूछोउस गली जा कर हालत बद से बदतर हो सकती हैकिसी भी झाँसे में मत आओ । अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की कोशिश करें , शुभ विचार , मानव मात्र की भलाई के लिए किये हुए कर्म मन का तापमान नियन्त्रित रखेंगेशुभ भाव तो सुन्दर हैं कर्म , सुन्दर हैं कर्म तो जीवन सुन्दर ! और मन ठँडा ....