शनिवार, 16 मार्च 2013

अन्तर्जाल की सुविधा

गाँव शहर एक होने लगे
दुनिया ग्लोबलाइज़ होने लगी
न्तर्जाल की दुनिया ने हजारों मील दूर बैठे व्यक्ति के भी अन्तरंग पलों में झाँक लेने की सुविधा हमें दी है। गूगल सर्च तो जैसे हर मर्ज का इलाज हो। कैसा भी विषय हो हर सम्भव जानकारी और हल के सारे औप्शन्स  बस एक क्लिक के साथ हाजिर हो जाते हैं। मोबाइल और कम्प्यूटर ने नेट के जरिये दुनिया को छोटा कर दिया  है या यूँ कहिये हमारे दायरे को विस्तार दे दिया है।
चिन्ता का विषय ये है कि हर हाथ में अन्तर्जाल की सुविधा ने जैसे हर किसी को नेट पर व्यक्तिगत डायरी लिखने का जन्म-सिद्ध अधिकार दे दिया हो। अश्लील विकृत मानसिकता दर्शाती हुई हर सम्भव जानकारी यहाँ परोसी जा सकती है। न चाहते हुए भी आप अन्जाने ही कभी उनके लिंक्स तक पहुँच सकते हैं। ये लिंक्स कुकुर-मुत्तों की तरह उग आये हैं। हमारे नौनिहालों के हाथों में लैप-टॉप पहुँच चुके हैं , नई पीढ़ी जरुरत से ज्यादा तेज दिमाग वाली है , उसे काबू में रखना कठिन है ; और आप कितने पहरे बैठा लेंगे ! ऐसी साइट्स अच्छे-भले सँस्कार-शील चित्त को भी भ्रमित करने के लिये काफी हैं तो बच्चे तो कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं , उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ ठीक नहीं है।
विचार तरँगों की तरह फैलते हैं , छोटा अणु ही इकाई है ...परमाणु का जिम्मेदार कहीं ...ये कितना विस्फोटक हो सकता है ! हम इतने क्षुद्र कैसे हो सकते हैं , हम शुद्ध-बुद्ध हैं ...निकृष्ठ बातों में उलझ कर तरक्की कैसे करेंगे।
जो लोग नेट पर अश्लील लिखते हैं , दरअसल वो उनके मन की गाँठें हैं , जिसे वो बिना अपना नाम लिखे दुनिया को बाँट रहे हैं।नारी उपभोग की वस्तु नहीं है।प्रेयसि शब्द प्यार झलकाता है , आप जब किसी को प्यार करते हैं तो स्वयम अपने आप से प्यार करते हैं। सब कुछ मर्यादा में ही अच्छा लगता है, वरना जँगल-राज हो जायेगा। सारी उन्नति , सारे नियम-कायदे बेमायने जायेंगे। ऐसा कुछ भी लिख कर जिसे पढ़ कर शर्म से सिर झुक जाये या जिसका लिन्क ही पढ़ कर लगे कि इस वेब पेज को भी कम्प्यूटर की हिस्टरी से भी डिलीट कर दिया जाये ; कितना हानिकारक है। लेखन वही सार्थक है जो किसी के काम आये , जो किसी का मन उठाये या किसी का दुख हल्का करे। 
नेट की दुनिया को आभासी दुनिया कहा जाता है। सामीप्य का आभास तो होता है मगर अहसास नहीं होता।   जहाँ पहचान छुपा ली जाती है या बढ़ा-चढ़ा कर बताई जाती है , यानि सच में कमी सी है। सामीप्य की प्यास लिए आप आते हैं कुँए की तस्वीर के पास , तृप्ति क्या मिलेगी। इसलिए कर्तव्यों , अधिकारों , अपने आस-पास की जीती-जागती दुनिया से मुँह मोड़ कर इन आभासी रिश्तों से दिल लगाना अक्लमंदी नहीं है। सारी सोशल साइट्स भी व्यवहार का ही रूप हैं , इतने लाइक्स , इतने कमेन्ट्स ....आप देते हैं तो पाते भी हैं। आज की युवा पीढ़ी तो जैसे इस सबके पीछे पागल ही है। तकनीक का इस्तेमाल तकनीक की तरह ही किया जाना चाहिये।
          नेट ही वो माध्यम है जिससे बिना कुछ खास खर्च किये कॉलेज के फ़ार्म , नौकरियों के आवेदन-पत्र , बिजली के बिल घर बैठे ही भरे जा सकते हैं। ऑन लाइन शौपिंग , बैंकिंग , ई-टिकेटिंग और न जाने क्या क्या कर सकते हैं। स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉगिंग कर सकते हैं। मेरे जैसे लोग तो शायद कागज ही काले करते रहते और वो कभी प्रकाश में न आता अगर ब्लॉगिंग न होती। सोशल साइट्स ,वीडिओ चैट घर बैठे ही दुनिया जहान से जोड़े रखती हैं। इस भागती-दौड़ती दुनिया में नेट एक आवश्यकता बन गया है , तरक्की का पर्याय भी बन गया है व समय और धन का संरक्षक भी बन गया है। मगर फिर भी ये मायने रखता है कि आप अपने साधनों का इस्तेमाल उत्थान के लिये करते हैं या पतन के लिए।